अपने पिता गुरु तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरु बने थे. गुरु गोविंद सिंह एक महान योद्धा और कवि भी थे. 1699 में गुरु गोविंद सिंह ने बैसाखी के दिन अपने 5 शिष्यों को लेकर खालसा पंथ की स्थापना की थी. जीवन में आगे बढ़ने के लिए गुरु गोविंद सिंह ने लोगों को शिक्षा देते हुए कई सीख भी दी.
दसम ग्रन्थ
गुरु गोविन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया और उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया. बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है. यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है. यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है. दसम ग्रन्थ, गुरु गोविन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है.
सर्वस्वदानी
शौर्य के लिए पहचाने जाने वाले गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों या उनके सहयोगियों (शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ 14 युद्ध लड़े. धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें 'सर्वस्वदानी' भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम और उपाधियों से भी जाने जाते हैं.
संत सिपाही
कवि तौर पर अपनी पहचान रखने वाले गुरु गोविंद सिंह विद्वानों के संरक्षक थे. उनके दरबार में 52 कवियों और लेखकों की मौजूदगी रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था. वे भक्ति और शक्ति के अद्वितीय संगम थे. गुरु गोविंद सिंह हमेशा प्रेम, एकता और भाईचारे के पक्षधर थे.
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